DECEMBER INTERNATIONAL HINDI ASSOCIATION'S NEWSLETTER
दिसम्बर {{time_now|date:"2006"}}, अंक ४१ । प्रबंध सम्पादक: श्री आलोक मिश्र। सम्पादक: डॉ. शैल जैन
|
|
|
Human Excellence Depends on Culture. The Soul of Culture is Language
भाषा द्वारा संस्कृति का प्रतिपादन
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति परिवार के सभी सदस्यों एवं संवाद के पाठकों का अभिनंदन !
साल २०२४ का अंतिम महीना और मेरे कार्यकाल का क़रीब आधा समय कैसे बीता ये पता ही नहीं चला। इस दौरान समिति के द्वारा हिंदी प्रचार -प्रसार और भारतीय संस्कृति की जागरूकता की ओर काफ़ी कार्य किये गये। अगले साल के लिये कार्यक्रमों की रूपरेखा भी स्थापित की जा रही है।
हमें यह साझा करते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि भारतीय दूतावास, वॉशिंगटन डीसी ने अपना सहयोग दिया है और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (IHA) के कोलाबोरेशन में विश्व हिंदी दिवस (१० जनवरी २०२५) के आयोजन की इच्छा व्यक्त की है। इस अवसर पर बच्चों के निबंध लेखन एवं भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। यह प्रतियोगिता अमेरिका में हाई स्कूल के बच्चों को अपनी हिंदी भाषा की प्रतिभा दिखाने और अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का अद्भुत अवसर प्रदान करेगी । प्रतियोगिता के प्रथम तीन विजेताओं को भारतीय दूतावास, वॉशिंगटन डीसी में आमंत्रित करेगी और उन्हें ’विश्व हिंदी दिवस’ समारोह के दौरान सम्मानित करेगी।
’विश्व हिंदी दिवस’10 जनवरी को मनाया जाता है। कई शाखायें तैयारियों में व्यस्त हैं। ह्युस्टन शाखा ने 'कविता की शाम, विश्व हिंदी दिवस’ ६ दिसम्बर को मनाया और कार्यक्रम काफ़ी सफल भी रहा। अन्य शाखाओं के कार्यक्रम जनवरी में हो रहें हैं। वाशिंगटन शाखा भारतीय दूतावास के साथ मिलकर ’विश्व हिन्दी दिवस’ का कार्यक्रम कर रही है।
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की शाखाओं और आउटरीच राज्यों ने 'हिन्दी दिवस’ २०२४ के विशेष दिन को सफलता पूर्वक मनाया। कई जगहों के कार्यक्रम अख़बारों में प्रकाशित हुए, कुछ “टी वी एशिया” में प्रसारित हुए। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के हिंदी दिवस के सम्पूर्ण कार्यक्रमों के सम्मलित समाचार इंडिया अब्रॉड में प्रकाशित हुए। कार्यक्रमों के बारे में ‘विश्वा’ में और विस्तृत रिपोर्ट ’संवाद’ में प्रकाशित की गई हैं। मैं सभी शाखाओं और आउटरीच राज्यों के आयोजकों और उनकी कार्यकारिणी समिति को तहे दिल से धन्यवाद और बधाई देती हूँ। आप सभी ने कार्यक्रम को सफल बनाने, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के उद्देश्य को आगे बढ़ाने और दृश्यमान करने में अपना सम्पूर्ण योगदान दिया है।
Seal of Biliteracy-हमारी समिति की तरफ़ से हाई स्कूल में हिन्दी भाषा में Seal of Biliteracy की उपलब्धि पर काम हो रहें हैं। सबसे पहले नार्थ ईस्ट ओहायो शाखा ने अपने स्थानीय संडे स्कूल के साथ कोलाबेरेशन किया है। एक्रन संडे स्कूल ने सील ऑफ़ बाईलिट्रेसी के लिये, आधिकारिक तौर पर सितम्बर २०२४ से classes शुरू की हैं। ६ महीने के बाद इसकी सफलता के आधार पर अन्य शाखाओं को भी इसकी जानकारी दी जायेगी। कोई भी हमारे मेम्बर या पाठक अपने बच्चों के लिये उनके स्कूल में Seal of Biliteracy की उपलब्धि के लिये जानकारी चाहते हैं तो मुझसे या किरण खेतान (३३०-६२२-१३७७) से संपर्क कर सकते हैं।
अ.हि.स. का द्विवार्षिक कन्वेंशन- अगले साल २०२५ में समिति का द्विवार्षिक अधिवेशन नार्थ ईस्ट ओहायो के रिचफील्ड शहर में हो रहा है।यह कार्यक्रम मई २ - ४ तक हो रहा है। कृपया ये दिन आप अपने कैलेंडर में चिह्नित कर लें। विस्तृत समाचार शीघ्र ही प्रकाशित होगा ।आप सभी से अनुरोध है कि कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना सहयोग दें।
समिति की वेबसाइट- वेबसाइट को विकसित करने की दिशा में काम हो रहा है ताकि यह हमारे सदस्यों और हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति में रुचि रखने वाले अन्य लोगों के लिये आसानी से उपलब्ध हो सके। इस दौरान हम कोशिश कर रहें हैं, कि हमारी वेबसाइट पूरी सक्रिय रहे।आपको यदि इस बीच कोई दिक़्कत हो तो कृपया हमसे संपर्क करें, हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगें।
समिति की ई-मासिक पत्रिका ‘संवाद’- ’संवाद’ में नये लेखकों को अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने का अवसर दिया जाता है। भारतीय संस्कृति एवं हिन्दी भाषा से जुड़े कार्यक्रमों को प्रकाशित किया जाता है। हमारी शाखाओं और आउटरीच राज्यों के कार्यक्रमों और साथ ही दूसरे प्रोग्राम जो हमारी संस्था के उद्देश्यों के साथ अमेरिका या अन्य देशों में होते हैं उन्हें भी प्रकाशित करने की कोशिश करते हैं। आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि आप समाचारों और अपनी अप्रकाशित रचनाओं को हमसे साझा करें।
समिति के लिए यदि आप अपनी सेवा अर्पित करना चाहते हैं तो निःसंकोच हमसे संपर्क करें। आपके विचारों और सुझावों का हमेशा स्वागत है।
धन्यवाद,
शैल जैन
डॉ. शैल जैन
राष्ट्रीय अध्यक्ष, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति (2024-25)
ईमेल:president@hindi.org|shailj53@hotmail.com
सम्पर्क: +1 330-421-7528
***
|
|
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति – हिंदी सीखें
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति -- आगामी कार्यक्रम
२२ वाँ द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन २०२५
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति का २२ वाँ द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन
दिन -मई २ (शुक्रवार) एवं ३ (शनिवार ) , २०२५
स्थान - रिचफील्ड, ओहायो
आतिथ्य – अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति. की उत्तरपूर्व ओहायो शाखा
अधिवेशन का मूल विषय – 'नव पीढ़ी, डिजिटल युग में हिंदी और संस्कृति'
Theme -'New Generation, Hindi and Culture in the Digital age'
नोट - अधिवेशन में सारी गतिविधियाँ मूल विषय के लक्ष्य की पूरक रहेंगी ।
|
|
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति -- नॉर्थ - कैरोलीना (शार्लोट)आगामी कार्यक्रम
जनवरी ११ , २०२५
|
|
|
अमेरिका के विभिन्न शहरों में
उत्तर पूर्व, ओहायो शाखा में छठ पूजा 2024 समारोह
नवम्बर, 2024
द्वारा: डॉ. सोमनाथ रॉय, शाखा सचिव, उत्तर पूर्व ओहायो
|
|
|
छठ पूजा भारत के विभिन्न राज्यों में मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध त्योहार है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि (दीपावली के छह दिन बाद) को मनाया जाता है। बिहार राज्य में यह पर्व सबसे बड़े त्योहार के रूप में मनाया जाता है, और इस अवसर पर देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले बिहारी बड़ी संख्या में अपने गांव और शहर लौट आते हैं।
छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव और उनकी बहन छठी देवी (छठी मैया) की उपासना का पर्व है। इसे केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि भारत की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक माना जाता है। आज यह त्योहार भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेशों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। विदेशों में रहने वाले बिहारी समुदाय की महिलाएं मिलकर इस पर्व को बड़े उत्साह और विधिपूर्वक मनाती हैं। इस त्योहार में महिलाओं को विशेष महत्व दिया जाता है, जिससे समाज में महिलाओं के सम्मान और भूमिका को भी प्रोत्साहन मिलता है।
छठ पूजा चार दिन तक चलने वाला पर्व है, जिसमें प्रत्येक दिन का अपना महत्व और विशेषता है:
1. पहला दिन - ‘नहाय-खाय’
इस दिन व्रती सबसे पहले अपने घर की साफ-सफाई करती हैं और नदी या तालाब के पवित्र जल से स्नान करके व्रत की शुरुआत करती हैं। सात्विक भोजन के रूप में चना दाल, लौकी की सब्जी और रोटी बनाकर सबसे पहले व्रती भोजन करती हैं, उसके बाद परिवार के अन्य सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
2. दूसरा दिन - ‘खरना’
इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास करती हैं। शाम को गुड़ से बनी खीर (रसिया) प्रसाद के रूप में तैयार की जाती है। पूजा के बाद व्रती सबसे पहले इसे ग्रहण करती हैं और फिर परिवार और मित्रों में प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दिन के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।
3. तीसरा दिन - ‘संध्या अर्घ्य’
यह छठ पूजा का मुख्य दिन होता है। व्रती शाम को नदी या तालाब के किनारे परिवार और मित्रों के साथ इकट्ठा होते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। कोलसुप (बांस की टोकरी) में फल, सब्जी, ठेकुआ और जलता हुआ दीप रखकर व्रती सूर्यदेव की परिक्रमा करते हुए अर्घ्य प्रदान करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों की लंबी आयु का आशीर्वाद मांगती हैं।
4. चौथा दिन - ‘उषा अर्घ्य’
सूर्योदय से पहले व्रती अपने परिवार के साथ नदी या तालाब के किनारे पहुँचती हैं। जैसे ही सूर्यदेव का उदय होता है, व्रती जल में खड़े होकर पाँच बार परिक्रमा करते हुए अर्घ्य अर्पित करती हैं। जहाँ नदी या तालाब उपलब्ध नहीं होते, वहाँ चबूतरे में पानी भरकर पूजा की जाती है।
इस वर्ष छठ पूजा का आयोजन उत्तर पूर्व ओहायो में सोलोन और कोलम्बिया स्टेशन शहरों में छठ पूजा बड़ी धूमधाम और विधिपूर्वक मनाई गई। ठंडे मौसम के कारण चबूतरे में गर्म पानी भरकर व्रतियों ने उसमें खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य दिया। उषा अर्घ्य के बाद व्रती ने प्रसाद और कच्चे दूध का शरबत ग्रहण कर 36 घंटे का व्रत तोड़ा। इस अवसर पर उपस्थित सभी मित्रों और परिजनों को फल और ठेकुआ का प्रसाद वितरित किया गया। इस प्रकार छठ पूजा का समापन हुआ।
***
|
|
|
|
|
अमेरिका के विभिन्न शहरों मे छठ पूजा 2024 समारोह की झलकियां
पपियानी लेक, एडीसन, न्यू जर्सी
द्वारा: रंजना सिन्हा
|
|
|
|
|
अमेरिका के विभिन्न शहरों मे छठ पूजा 2024 समारोह की झलकियां
डालस, नवम्बर, 2024
द्वारा: अनीता सिंघल, पूर्व अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति
|
|
|
|
|
स्मृतियों का सफ़र - भारत से अमेरिका तक
एक आत्म कथा
|
|
|
|
|
|
|
डॉ. आनंद प्रकाश अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के आजीवन सदस्य है| इन्होंने हिंदी तथा संस्कृत की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की है। ये हिंदी रचनाओं के प्रशंसक रहे और इन्होंने कवियों और लेखकों की रचनाओं का स्वाध्याय किया है| ये वयोवृद्ध जल अभियंता हैं और व्यवसाय-जलविज्ञान और तत्संबंधित अभियांत्रिक कार्य में संलग्न रहे| इन्होने १२ वर्ष भारत में, तत्पश्चात ५२ वर्ष अमेरिका के लगभग ३० प्रदेशों में, और यदाकदा १५ विभिन्न देशों में व्यावसायिक विशेषज्ञ सलाहकार, टेक्निकल राइटिंग और सम्पादकीय कार्य के रूप में भ्रमण किया है|
|
|
|
|
|
"कहता है जब कोई मुझसे, जीवन है एक सपना; तभी देखने लग जाता हूँ, स्वप्न-जगत मैं अपना।"
हर जीवन-कथा इतिहास के पृष्ठों में अंकित नहीं होती, किन्तु वर्णनीय तो हो सकती है।
कथावाचक का जन्म द्वितीय महायुद्ध (१९३९ - १९४५) से चार पाँच वर्ष पूर्व हुआ था अतः बाल्यकाल के समय गाँव से युद्ध में गए कुछ युवकों के माता-पिता, एवं पत्नियों की आतंकित तथा आशंकित अवस्था के प्रलाप सुनने में आते थे। युद्ध-रत भारतीय सिपाहियों की गति-विधियों का संक्षिप्त परिचय कई कई मास में मिल पाता था। हुतात्मा (शहीद) सिपाही की सूचना एक-दो मास पश्चात् एक-दो पंक्ति के पोस्ट कार्ड द्वारा भेज दी जाती थी। इसी बीच गाँधी जी का 'भारत छोड़ो’ आंदोलन भी हुआ था। सामान्य जीवन भयावह एवं असुविधापूर्ण था; गृह-सामग्री (खाद्य-पदार्थ, वस्त्र, केरोसीन आयल, लोहे के यंत्र इत्यादि) अत्यंत महंगे, लगभग अलभ्य से हो गए थे।
गाँव में एक से चार तक की बाल-शिक्षा के लिए एक मदरसे (स्कूल) का प्रावधान था। इसके पश्चात्, उसे वर्नाकुलर फाइनल (कक्षा ५-७) के लिए दो मील दूरस्थ मिडिल- स्कूल जाना पड़ता था। यहाँ इंग्लिश की शिक्षा नहीं होती थी; केवल हिंदी अथवा उर्दू में से एक अनिवार्य एवं एक वैकल्पिक विषय लेना पड़ता था। वैसे तो वर्नाकुलर फाइनल एक राजकीय व्यवस्थित प्रमाण-पत्र था। नियमित पाठित विषय थे: प्रथम भाषा- हिंदी; द्वितीय भाषा- उर्दू; अंकगणित; ज्योमेट्री , इतिहास एवं भूगोल| किन्तु अंग्रेज़ी नहीं पढ़ाई जाती थी। संभवतः ग्रामीण तथा अल्प-शिक्षित एवं न्यून आर्थिक स्तर के जन-समुदाय के लिए ब्रिटिश सरकार ने प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में दो तीन "मिडिल स्कूल" स्थापित किये थे, जहाँ उपरोक्त विषय पढ़ाये जाते थे। यह योग्यता ग्रामीण व्यवसाय (जैसे पटवारी, पेट्रोल, पुलिस सिपाही, प्राथमिक एवं मिडिल स्कूल अध्यापक , निचले न्यायालय के मुंशी, इत्यादि) के लिए अनिवार्य एवं पर्याप्त थी। किन्तु विडम्बना यह थी कि पाँच से दस कक्षा के लिए प्रायः उच्च कोटि के कुछ ग्रामों और नगरों में हाई स्कूल होते थे, जहाँ सातवीं कक्षा से प्रारंभिक इंग्लिश की शिक्षा दी जाती थी। इस कारण वर्नाकुलर फाइनल से आये विद्यार्थी को हाई स्कूल करने के लिए पुनः सातवीं कक्षा से प्रारम्भ करना पड़ता था। अर्थात् केवल अंग्रेज़ी की प्रारंभिक शिक्षा के लिए पूरे एक वर्ष का पुनरावृत्त अध्ययन करना पड़ता था।
आज अध्यापक महोदय ने कक्षा समाप्ति में कुछ विलम्ब कर दिया। उसके गाँव से मिडल स्कूल जाने वाला एक वही विद्यार्थी था। शीघ्रता से अपनी पुस्तकें संभाल कर गाँव की ओर प्रस्थान किया। लगभग दो मील की पदयात्रा थी और मार्ग की विस्तृति (चौड़ाई) छः - सात फुट थी। दोनों ओर गन्ने के घने क्षेत्र थे, वायु के झोंकों से टकराकर खेतों से सांय सांय की भयानक ध्वनि आ रही थी। दिवस का अवसान समीप था। निर्जन, सुनसान मार्ग में त्वरित गति से चलते चलते सामने से आते हुए एक पञ्च-चिन्ह-विभूषित भीम-काय सिक्ख सज्जन पर दृष्टि-पात हुआ| ऐसे वातावरण में १२-१३ वर्षीय बालक भयभीत हो गया। सहमे सहमे आगे बढ़ा, मुख से 'नमस्ते जी' निकला और मन को शांति मिली। थोड़ा आगे राजकीय जल-वाहिनी के पुलिन पर खड़ी वृद्धा पितामही को देखकर कुतूहल, शांति और हर्ष की अनुभूति हुयी| "माँ तू यहाँ क्या कर रही है ?" "कुछ नहीं, बेटा, देर हो रही थी, मन घबरा रहा था| सोचा चल कर देखूँ, कहाँ हो ?" सौभाग्य-वश उस समय, उस क्षेत्र में यौन-अपहरण इतनी सामान्य घटना नहीं थी, जितनी वर्तमान काल में है।
द्वितीय महा युद्ध की समाप्ति से लगभग एक वर्ष पूर्व की एक घटना की धुंधली सी स्मृति आती है। ग्रामीण क्षेत्र में अंग्रेज़ कलेक्टर का दौरा था। सुमन-सुसज्जित सुविशाल वितान निर्माण किया गया। उस पर उच्चासन का मंच, कुर्सी और मेज़, इत्यादि। कई भारतीय उच्च अफसरों के स्वागत-भाषण हुए। तत्पश्चात् एक ग्रामीण गायक का गीत प्रारम्भ हुआ। गीत के पद कुछ इस प्रकार थे "हिटलर यूँ व्याख्यान दे ; डंके पर ऐलान दे ; जो मदद न हिन्दुस्तान दे; बंदरों के भून दूँ दाने"| सुनकर सहम गए सब अफसर एवं अन्य उपस्थित सज्जन गण। गायक को चुपचाप मंच से उतार दिया गया। सभी लोग चिंतित हो गए, पता नहीं, अंग्रेज कलेक्टर को ग्राम्य-भाषा का गीत कितना समझ आया होगा| किंवदंति से ज्ञात हुआ था कि गायक को कुछ मास का कारावास हुआ था। पर कारावास से मुक्ति के पश्चात् गाँव वालों ने गुप्त रूप से सम्मान सहित 'महाशय' की उपाधि दी थी।
प्रथम श्रेणी और अंकगणित में विशिष्टता सहित वर्नाकुलर फाइनल (कक्षा ७) समाप्त हुआ। सौभाग्य-वश मातुल के गाँव से एक मील दूर एक नये हाई स्कूल का निर्माण हुआ था। चार वर्ष के लिए वहाँ भेजा गया, रहन-सहन की सुविधा हो गयी। इस समय तक द्वितीय महायुद्ध समाप्त हो चुका था। भारत स्वतंत्र हुआ और देश-विभाजन हुआ, जिसके फलस्वरूप एक नए महाभारत का वीभत्स, विकृत रूप देखने को मिला। धर्म-सम्बन्धी हिंसक उत्पात हुए, दोनों देशों से अगणित जनसमूह का विस्थापन हुआ|। लाखों निर्दोष, निष्कपट परिवारों ने शरणार्थी बन कर बस से, रेल से, बैल-गाड़ी से, अथवा पैदल, जैसे भी हुआ, नए भारत की सीमा में प्रवेश किया। जनसाधारण में आगंतुक शरणार्थियों के प्रति अपूर्व आतिथ्य एवं भ्रातृ-भाव और हर यथासंभव सहायता का उत्साह और उल्लास था। स्कूल के छात्रों को स्टेशन पर रेल की यात्रा करते हुए व्यक्तियों को जल-पान अर्पण करने के लिए लगाया था। मानव-जाति की बर्बरता का यह भीषण परिणाम बहुत भयंकर एवं दयनीय था। कहते हैं, देश-विभाजन सम्बन्धी सांप्रदायिक दंगो में लाखों बालक, युवा, वृद्ध, पुरुष तथा महिलाओं की हत्या हुयी थी| इसी के एक वर्ष उपरांत, गाँधी जी का निधन हुआ। लगता था, मनुष्य पाशविक, हिंसक प्रवृत्तियों का दास हो गया था।
प्रथम श्रेणी एवं चार विषयों में विशिष्टता सहित हाई स्कूल समाप्त हुआ। तत्पश्चात्, आगे की शिक्षा पूर्ण हुयी और स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय औद्योगिक संस्थान रुड़की (Univ. of Roorkee) में सिविल अभियांत्रिकी स्नातकी के लिए प्रवेश मिला। पाँच वर्ष पूर्व यह संस्था थॉमसन कॉलेज से रुड़की विश्व-विद्यालय में परिवर्तित हो चुकी थी। उस समय तक इस विद्यालय की रहन-सहन तथा अध्यापन-प्रणाली में ब्रिटिश प्रभाव शेष था। अतः, अनुशाशन, वेश-भूषा, भोजनगृह, क्लब, स्पोर्ट्स इत्यादि का स्तर कुछ उच्चतर और महंगा था। येन केन प्रकारेण, राजकीय ऋण की सहायता से तीन वर्ष की शिक्षा समाप्त हुयी और सिविल अभियांत्रिकी की प्रथम श्रेणी में पूर्वस्नातक उपाधि प्राप्त हुयी।
अंततः, सिंचाई विभाग में राजकीय अभियंता का कार्य प्रारम्भ किया। चार वर्ष तक प्रदेश की विभिन्न सरिताओं पर प्रस्तावित योजनाओं के व्यवहार्यता एवं औचित्य सम्बंधित विश्लेषण पर कार्य किया|। उस समय तक प्रथम पंच-वर्षीय योजना (१९५१-५६) समाप्त हो चुकी थी, द्वितीय पंच-वर्षीय योजना (१९५६-६१) की सिंचाई उपयोजनाएँ कार्यान्वित हो रही थीं। तृतीय पंच-वर्षीय योजना (१९६१-६६) की प्रस्तावित सिंचाई उपयोजनाओं के प्लान एवं डिज़ाइन तैयार किये जा रहे थे। स्वतंत्रता मिले लगभग एक दशक से अधिक हो चुका था, राजकीय विभागों के नियमों और कार्य-प्रणाली में धीरे धीरे परिवर्तन हो रहा था| किन्तु अधिकतर ब्रिटिश काल की सिंचाई-नियमावली ही प्रयोज्य थी। जैसे कि, अभी तक विभाग के अभियंता के लिए सफल घुड़सवारी-परीक्षण का प्रमाण-पत्र अनिवार्य था। इस समय में मध्यम कोटि की परियोजनाओं के निर्माण पर कार्य करने का सुअवसर मिला|
अब स्थानांतरण हुआ। विश्व-विद्यालय में नियुक्ति हुयी और वहाँ अध्यापन एवं भवन-निर्माण अधियन्ता के साथ स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वहाँ पाँच वर्ष कार्य किया| इसी बीच विद्यावाचस्पति (पी एच डी) के लिए अमेरिका आने का सुअवसर मिला।
दिसम्बर १९७१ सांयकाल वायुयान शिकागो पहुँचा और अग्रिम यात्रा के लिए अंतर्देशीय विमान से डेनवर के लिए प्रस्थान किया। वायुयानों की अवतरण एवं उपरितरण प्रक्रिया में अमरीका की भव्यता की प्रथम झलक देखी। ऊपर नभ-विहीन स्वच्छ आकाश में द्युतिमान नक्षत्र वृंद और भूमि पर शिकागो की लम्बी लम्बी बीथिकाओं के समानांतर द्रुत गति से पलायन करती हुई विद्युत्-प्रकाशित दीप -माला| अत्यंत मन-मोहक़ दृश्य था। अर्धरात्रि के समय डेनवर स्टेपलटन विमानाश्रय पहुँचे। टेलीफोन बूथ खोजा और आतिथेय मित्र को कलेक्ट काल लगाई। उत्तर आया, 'कृपया एक डायम डालिये’। सुनकर हत-प्रभ हो गया| रात्रि में कहाँ से डायम लाऊँ? यही मित्र तो वहाँ से ६५ मील फोर्ट कॉलिंस तक ले जाने वाला था। इधर उधर दृष्टि-पात् किया। निकटस्थ एक महिला देखी। विनयपूर्वक अपनी दुविधा सुनाई। महिला ने पर्स से निकाल कर एक डायम दिया। डायम डालते ही कॉल सफल हुई और तुरंत ही डायम बाहर निकल पड़ा। चकित हो गया|। कलेक्ट कॉल का यही नियम था। महिला को धन्यवाद के साथ डायम लौटा दिया।
चार मास पश्चात् पत्नी, पुत्री, एवं पुत्र भी आ गए और विवाहित-शिक्षार्थी-गृह में रहन सहन का प्रबंध हो गया। इस आवासीय-परिसर में एक लोन क्लोजेट (loan closet) थी जहाँ घरेलू आवश्यकता के उपकरण (जैसे, किचन के बर्तन, इत्यादि ) उपलब्ध थे। अपने शिक्षा-काल के लिए उपकरण मिल जाते थे और शिक्षा समाप्ति पर, अपने देश लौटते समय जो भी उपकरण वापस नहीं ले जाना होता था उसको यहाँ जमा कर देते थे। इस प्रकार क्लोज़ेट में उपकरणों का अभाव नहीं होता था। कितना उत्तम प्रबंध था ? विदेशी छात्रों की सुविधा के लिए आवश्यकतानुसार एक आतिथेय परिवार (host family) उपलब्ध किया जा सकता था, जो औपचारिक रूप से गृहस्थ-जीवन की आवश्यकताओं में परामर्श एवं सहायता दे सकते थे।
भारत से प्राप्य अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस तो था ही, एक सेकिंड-हैंड थंडरबर्ड क्रय कर ली। पहली बार सड़क पर निकले तो पुलिस ने रोका। अकस्मात् गाड़ी बाईं ओर पार्क कर दी। अफसर ने भारतीय लाइसेंस देखा तो कहा, 'ओह, लेफ्ट इज़ राइट फॉर यू। ध्यान रखिये, यहाँ दायीं ओर गाड़ी चलाते हैं, बाईं नहीं; धन्यवाद|’
“दिवस जात नहिं लागिहि बारा। ” शनैः शनैः शोधकार्य और सम्बंधित अध्ययन प्रारम्भ हो गया। भारत की शिक्षा और अध्यापन तो स्लाइड रूल से चलकर IBM 1620 तक आयी थी। यहाँ तो IBM 360 मेनफ़्रेम की पूर्ण सुविधा प्राप्त थी। लगभग २८ मास में पी एच डी सम्बंधित अभीष्ट शोधकार्य समाप्त हो गया।
अब व्यावसायिक जीवन का द्वितीय चरण अमरीका में परामर्शी अभियंता के रूप में प्रारम्भ हुआ। सर्व प्रथम इंडियाना और ओहायो में प्रस्तावित दो न्युक्लीयर उपयोजनाओं का जल-सम्बंधित विश्लेषण किया। उसके साथ अमेरिकन न्युक्लीयर सोसाइटी की उपसमिति में सदस्यता मिली। दस सप्ताह के लिए एक प्रस्तावित यूरेनियम खनन योजना के भूजल प्रदूषण सम्बंधित विश्लेषण और एक दूसरी ऑपरेटिंग यूरेनियम माइन के अधिशेष जल नियंत्रण के लिए ऑस्ट्रेलिया-गमन का अवसर मिला। वहाँ से अमरीका लौटने के पश्चात् १९८० से २००० तक का कार्यकाल व्यावसायिक जीविका का, अधिकतम व्यस्त समय रहा।
इस कार्यकाल में अमरीका के बारह प्रदेशों में स्थित विभिन्न धातु-खनन निगमों के लिए जल सम्बन्धी अन्वेषण किये और न्युक्लीयर तथा जीवाश्म (fossil) शक्ति-संयंत्रों (power plants ) के लिए लगभग चालीस जल-संसाधन सम्बन्धी अध्ययन एवं विश्लेषण किये। पाँच प्रदेशों तथा पोर्टरिको (Puerto Rico) में लघु-जल-विद्युत् (small hydropower) सम्बन्धी अन्वेषण किये तथा तत्-सम्बन्धी सिद्धांतों की रूपरेखा (guidelines) तैयार करने के लिए अमरीकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजिनीयर्स की समिति के कार्य में योगदान दिया। बीस प्रदेशों में जल-संसाधन, वितरण, और बाढ़-नियंत्रण सम्बन्धी उपयोजनाओं पर कार्य किया। बारह जल-भण्डारण एवं बाँध-सुरक्षा सम्बन्धी एवं सात प्रदेशों में टेलिंग्स डैम (Tailings Dam) सम्बन्धी विश्लेषण किये। पंद्रह प्रदेशों में प्रदूषित जल एवं मिटटी के सुधार की परियोजनाओं पर कार्य किया।
इसी बीच एक दशक से अधिक समय तक अमरीकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजिनीयर्स के हाइड्रोलिक्स डिवीज़न के जर्नल की सम्पादक समिति की और पाँच वर्ष तक इंटरेनशनल जर्नल ऑफ़ हाइड्रोलॉजिक प्रोसेसेज़ की संपादक समिति की सदस्यता की।
इसके अतिरिक्त लगभग दस न्याय सम्बन्धी विषयों में जल एवं भूजल विषयक विविध प्रकरणों में शपथ-पूर्वक विशेषज्ञ साक्ष्य (expert testimony) देने का अवसर मिला। एक स्थिति में हेलेना मोंटाना अदालत में अमरीकन इंडियन संघ परिवादी था और विशेषज्ञ-साक्ष्य जल-उपभोक्ता संस्था के अधिकारियों के पक्ष में कर रहा था। कोर्ट का मध्यान्ह अवकाश हुआ। एक सुशील महिला पास आकर बैठ गयी| "श्रीमान आप तो इंडियन हैं और मैं परिवादी पक्ष के इंडियन समाज से हूँ। आप को तो हमारी ओर से साक्ष्य देना चाहिए था, सम्भवतः कुछ भ्रम हुआ है। मूलतः, मैं भारत (इंडिया) से हूँ और आप नृजातीय रूप से अमरीकन इंडियन हैं। ‘वसुधैव कटुम्बकम’ के अनुसार तो हम सब एक ही हैं। किन्तु यहाँ कोर्ट में आप तो अमरीकन इंण्डियन हैं, पर मैं केवल एक विशेषज्ञ हूँ, जो किसी विशेष देश, नृजातियता, अथवा जन-जाति-संघ का प्रतिनिधि नहीं हो सकता। इस स्थिति में मेरे किसी भी प्रकार के इंडियन होने से कोई अंतर नहीं पड़ता।"
एक अन्य प्रकरण में विपक्ष के वकील ने आपत्ति की थी "आप तो जल-संसाधन-अभियंता (Chief Water Resources Engineer) हैं; यहाँ विवाद वनस्पति की सिंचाई के लिए अनिवार्य जल-राशि का है। यह तो आपके क्षेत्र से बाहर है। अतः आप उपयुक्त विशेषज्ञ नहीं हो सकते। "माननीय विधिज्ञ जी, जल-सिंचन जल-संसाधन का एक अंग है। मैं १९५८ से १९६६ तक एक राजकीय सिंचाई-अभियंता रहा; १९६६ से १९७१ तक एक विश्व-विद्यालय में अध्यापन-काल में मेरा विषय सिंचाई रहा था; और मेरी स्नातकी शिक्षा में वाष्पन-विसर्जन (evapotranspiration) एक मुख्य विषय रहा है; जो एक प्रकार से सिंचाई का ही टेक्नीकल नाम है|" वकील जी हत-प्रभ हो गए।
इसी बीच अमरीकन सोसाइटी ऑफ सिविल इंजिनीयर्स द्वारा प्रायोजित जल-विद्युत्-गृह एवं बाँध-सुरक्षा-निदेशक सिंद्धान्तों की रूपरेखायें (guidelines) तैयार करने में सह-लेखक का कार्य किया।
अब इकीसवीं शताब्दी प्रारम्भ हुयी। यहाँ तक आते आते लगभग सत्तर से अधिक तकनीकी पत्र विभिन्न पत्रिकाओं और सम्मेलनों में प्रस्तुत किये। २००४ में ३४८ पृष्ठ की वाटर रीसोर्सेज़ इंजिनीयरिंग (Water Resources Engineering) शीर्षक की एक पुस्तक प्रकाशित हुयी, जिसका ऐरेबिक(Arabic) भाषा में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ। इसके साथ ही २०११ में कॉन्फिडेंस और प्रोविडेंस Confidence or Providence) शीर्षक का एक ३१८ पृष्ठ का उपन्यास स्वयं-प्रकाशित किया। लगभग बारह जल-आपूर्ति-बाँधों की संशोधित-चालन-नियमावली (operations manuals) की समीक्षा की।
इस शताब्दी के द्वितीय शतक तक आते आते भारत, अमरीका, बंग्लादेश, जापान, फिलीपीन, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, वेनेज़ुएला, बोलीविया और डॉमिनिकन रिपब्लिक इत्यादि राष्ट्रों में अतिथि के रूप में तथा पनामा और चैड में विशेषज्ञ के रूप में कार्य किये। वैसे तो हर विदेश यात्रा से किसी न किसी उपयोजना का सम्बन्ध रहा था, किन्तु इरीयंजाया, इंडोनेशिया की आँखों देखी स्थिति उल्लेखनीय है। वहाँ की पर्वत श्रंखला में स्थित ताम्बे तथा स्वर्ण की कई दशकों पुरानी एक खदान है जिसके खनन-अपशिष्ट (mine tailings) का स्राव सीधे एक पर्वतीय सहायक नदी में होता था और वहाँ से आइक्वा नामक मुख्य सरिता में जाता था। कई दशक की इस प्रक्रिया के फलस्वरूप प्रदूषित-स्राव-मार्ग की कई उपसरिताएं अवरोधित हो चुकी थी। समुद्र-तट की निकटस्थ मूल चैनल बहुत छिछली हो चुकी थी। समुद्र-तट पर प्रदूषित खनन-अपशिष्ट का विशाल ढेर बन चुका था और आस पास के मूल-निवासी समुदाय के कई गाँव लुप्त हो चुके थे। खनन उपयोजना राजनैतिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से एक बवंडर बन गयी थी। संभवतः तत्पश्चात् कुछ सुधारक उपचार किये गए हों।
एक बार डोमिनिकन रिपब्लिक यात्रा के लिए डेनवर से मियामी (Miami) पहुँचकरर देखा कि पासपोर्ट घर पर रह गया। पैन ऍम (Pan Am) एयर लाइन्स के स्थानीय अधिकारी ने एक प्रमाण-पत्र दिया तो सांतो डोमिंगो (Santo Domingo) तक पहुँचने की स्वीकृति मिल गयी। डेनवर कार्यालय से रजिस्टर्ड पोस्ट द्वारा पासपोर्ट भेजा गया, किन्तु वापसी के समय तक पासपोर्ट सांतो डोमिंगो नहीं पहुंचा। अतः बिना पासपोर्ट सांतो डोमिंगो से मियामी यात्रा प्रारम्भ की। मियामी में आप्रवासन-अधिकारी ने प्रश्न उठाया और अपने कम्प्यूटर पर अन्वेषण किया। "अति उत्तम, आपका डेनवर में १९८२ में देशीयकरण (naturalization) हुआ था। डोमिनिकन रिपब्लिक से अमरीका वापसी पर स्वागत है। विदेश यात्रा के लिए सर्वदा पासपोर्ट साथ रखिये। ” डेनवर पहुँचने पर पता चला कि पासपोर्ट मेल में चोरी हो गया था।
टोक्यो की प्रथम यात्रा में एक हास्यास्पद भ्रम हुआ था। रात्रि का समय था। होटल के कमरे में प्रवेश किया तो सूचना-बटन प्रज्वलित देखा। डेस्क को फ़ोन किया "मेरा एक मैसेज है; कृपया मेरा मैसेज भेज दीजिए। " उत्तर में एक व्यक्ति नोट-पैड लिए आया; "कितनी मिनट, श्रीमान"? आश्चर्य चकित हो कर मैसेज बटन की ओर संकेत कर के कहा, “मेरा कोई मैसेज है, वह लाइए; मिनट से क्या प्रयोजन है?” "सॉरी श्रीमान, भ्रम हो गया "| तुरंत सूचना लेकर आया। उच्चारण में अंतर होने के कारण उस व्यक्ति ने मैसेज (message) को मसाज (message) समझ लिया था।
अवकाश-प्राप्त जीवन-काल में थाईलैंड, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, फ़्रांस, नेदरलैंड, मेक्सिको, इंग्लॅण्ड और कैनाडा तथा भारत इत्यादि देशों का परिवार-सहित निजी पर्यटन किया। डोमेस्टिक स्थलों के भ्रमण में हवाई, निआग्रा जल-प्रपात, योसिमिटी पार्क,ग्रैंड केनयन, तथा अलास्का क्रूज़ विशेष रहे।
इक्कीसवीं शताब्दी के दो दशक समाप्त हो चुके थे| इस समय नियति का निष्ठुर प्रहार हुआ; पत्नी-निधन हो गया और ६५ वर्ष का सुखमय दाम्पत्य जीवन विरह-ग्रस्त हो गया| बढ़ती आयु में एक भयंकर कष्ट का प्रादुर्भाव हुआ| चहुँ ओर अंधकार-मय एकांत, शारीरिक ऊर्जा और बाह्यावागमन का अभाव, हतोत्साह हो गया| धीरे धीरे स्वाध्याय, प्राणायाम, तथा व्यायाम के सहारे पुनः सरल जीवन पुनरारंभ किया। एक वर्ष पश्चात् सभी व्यावसायिक कार्यों से त्याग-पत्र दे दिया।
संभवतः इसी को जीवन-संध्या या संन्यास कहते हैं| “सारा खेल खिलाड़ी का सा सपनों ने दिखलाया, यह जीवन भी स्वप्न मार्ग से उतर भूमि पर आया” ।
***
|
|
|
|
|
अपनी कहानियाँ
"इत्र वाला खत"
|
|
|
|
|
|
द्वारा: सुनीता निमिष सिंह
|
सुनीता निमिष सिंह उदयपुर, राजस्थान, भारत से है l इन्होने B. Sc. देवी अहिल्या विश्वविधालय इंदौर एवम MBA (NIM) मुंबई से किया है l ये एजुकेशनल काउंसलर है l इनकी आल इंडिया रेडियों एवम 92.7 बिग फम एम के कार्यक्रम में भागीदारी रहती है l महिला काव्य मंच उदयपुर इकाई और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार एवम सामाजिक न्याय संगठन ( Human Right and Justice Organization) इकाई की अध्यक्षा है l गुफ़्तगु ज़िंदगी की और मध्यम वर्गीय परिवार साझा इनके काव्य संग्रह है l राजस्थान साहित्य आकादमी के सहयोग से " ज़िंदगी के रंग " पुस्तक प्रकाशित हुई है l इन्हें दो बार वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड प्राप्त हो चुके हैंl
|
|
|
|
|
इत्र वाला खत
शाम की लालिमा धीरे धीरे उजियाले को अपनी आगोश में समेटने लगी थी l सुधा रोज की भाँति आज भी आराम कुर्सी पर बैठी एकटक गेट पर राह निहार रही थी l सुधा की अब तो मानो रोज़ की यह दिनचर्या हो चली थीl हर रोज़ जब तब अंधियारा पुरी तरह से न पसर जाता और कोई दूर तलक दिखाई नही देता तब तक बैठी इंतज़ार ही करती रहती फ़िर धीरे से उठ अपने मन को समझा कमरे में चली आती lआज भी उसके इंतजार की सीमा खत्म हो रही थी तभी गेट की आवाज़ ने उसे चौका दिया l पोस्ट मैन - पोस्ट मैन कहता हुआ पोस्ट मैन अंदर दाखिल हुआ l सुधा को देख मुस्कुराता हुआ बोला, दीदी समय तो नही था डिलीवरी करने का पर आप के लिये तो आना ही था l सुधा ने आभार व्यक्त कर लिफाफा ले लिया l निखिल का ही खत होगा और आर्मी की सील देख सुधा ने गहरी साँस ली l कुछ पल तो गिला शिकवा सब भुल गयी मन ही मन बुदबुदाई ये कौन सी बात हुई भला न चिठ्ठी ,न कोई संदेश व्याकुलता लिये लिफाफा खोलने लगती है l
सुधा जी
सादर नमस्ते
मैं निखिल का मित्र अरविंद आप को खत लिख रहा हूँ l निखिल के आग्रह पर मैं आप को खत लिखने को विवश हूँ l मुझे आप को यह खत लिखना चाहिये या नही मैं नही जनता, सच कहूँ तो निखिल द्वारा आपकी बातें जान कर आप के व्यक्तित्व की एक छवि ने भी मुझे आप को खत लिखने को मज़बूर कर दिया l जैसा मुझे निखिल ने बताया कई महीनों से उसने आप के खतों के जबाब नहीं दिये हैं, फोन भी उसने अपने घर से हटवा दिया है बहुत समय तक तो उसे समझ ही नहीं आ रहा था वह क्या करे काफी सोच समझ कर निर्णय ले उसने मुझे आप को सूचित करने को कहा है l उसे आत्मग्लानि है, शायद वो आप को फेस नहीं कर पा रहा lउसका कहना है की परिस्थितियों के हाथों इंसान मज़बूर हो जाता है, जिसे बयाँ नही कर सकता l सुधा को कहना हम कुछ समय साथ चले पर आगे ज़िंदगी का सफ़र हमें एक दूजे के बिना ही बिताना होगा l मुझे एक ख़्वाब समझ, भूल जाये l मैं आप की मनोदशा का अनुमान लगा सकता हूँ l न चाह कर भी मुझे इस गुनाह में मित्र का साथ देना पड़ रहा है। मैं क्षमाप्रार्थी हूँ l
अरविंद
खत पढ़ सुधा ठगी सी रह गयी l निखिल अपने वादे पर नहीं रहना था तो मुझे यहाँ तक लाये क्यों? सब फैसले भी तुम्हारे ही लिये हुए थे और अब जीवन के चौराहे पर यूँ तन्हा, अकेले, दीन हीन छोड़ने का मतलब ? जब ये ही सब करना था तो मेरी ज़िंदगी में आये ही क्यों ? सुधा और निखिल एक ही कक्षा के विधार्थी थे l निखिल का परिवार सम्बन्ध , शिक्षित, उच्च घरानों में आता था वहीं सुधा मध्यमवर्गीय परिवार से थी l सुधा बुद्धिमान, सुशील, शाली, कुशल व्यवहारिक उसकी मुस्कान और उसकी इत्र की ख़ुशबू का निखिल तो क्या कक्षा का हर विधार्थी, क्या जूनियर, क्या सीनियर सभी थे l निखिल के दिलो दिमाग पर सुधा इस कदर छाई की संस्कारी निखिल ने माता पिता की इच्छा के विरुद्ध जा कर सुधा को प्रेम विवाह में बाँध लिया l दोनों के माता पिता ने दोनों से अलगाव कर लिया l
किस्मत की धनी सुधा ने पहली बार में ही प्रतियोगिता परीक्षा पास कर शिक्षा के क्षेत्र में प्रिंसिपल पद का कार्यभार संभाला और उसके बाद वो निखिल के कैरियर पर केंद्रित हो गयी l जब तक निखिल रात में पढ़ाई करता ,सुधा उसके साथ ही जागती रहती l नोट्स बनाने में, रिवाइज् करवाने में, खाने पीने में उसका विशेष ध्यान रखती और फ़िर दोनों की मेहनत रंग लायी l प्रतियोगिता परीक्षा का परिणाम आया और निखिल आर्मी में लेफ़्टिनेंट के पद पर चयनित हुआ l आज तो सुधा के पैर ज़मीन पर नहीं थे l वो ख़ुशी से झूम उठी l आँखो से ख़ुशी के आँसू बह निकले l निखिल भी सुधा को गोद में उठा, आसमान की ओर देखता बहुत देर तक उसे गोल गोल घुमाता रहा l निखिल बस बंद भी करो मुझे चक्कर आ रहे है l सुधा का चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था l सुधा के कहने पर निखिल उसे उतारता है और सुधा की आँखो से बह रहे आँसुओं को अपनी हथेली में ले अपने माथे पर लगा लेता है l
आज भी उसकी आँखो से अनवरत अश्रु की धारा बहे जा रही थी, फर्क इतना था वो ख़ुशी के आँसु थे l अब पीड़ा के, वेदना के, दुख के किन गुनाहों की सजा उसे मिल रही है, वह नही जानती l निखिल ने एक काग़ज का टुकड़ा भेज उसकी ज़िंदगी बदल दी l
रोते रोते वो अतीत की यादों में खो गयी l
भोर होते ही पक्षी चहचहाचने लगते, ओस की बूँदे सुबह सुबह पत्तो को नहला रही थी l सुधा की आदत थी वह हर रोज़ सुबह उठते ही दरवाजे पर खड़ी हो अपनी बगिया को निहारने लग जाती l उसका ये अंदाज निखिल को बेहद पसंद आता l वो भी उठ कर सुधा का सहारा ले उसके पास खड़ा हो जाता l चाय की चुस्कियों के साथ दोनों की सुबह की शुरुआत खुबसूरत होती l सुधा चाय पीते पीते अपनी फुलवारी को निहारती रहती l जब निखिल उसे लगातार देखता रहता तो वह असहज हो मुस्कुरा कर पूछती ऐसे क्या देख रहे हो तो निखिल कहता तुम तुम्हारी फुलवारी को देखो और मैं मेरी फुलवारी को देख रहा हूँ l सुधा का चेहरा ख़ुशी से चमक उठता l
चाय खत्म होते ही सुधा जब क्यारींयों की तरफ रुख करती तो निखिल कहता कुछ देर तो साथ इतमिनान से बैठो सुधा, तो वह हँस कर कहती निखिल ये महज पौधे ही नहीं हमारे परिवार का हिस्सा हैं l क्या निखिल प्रेम के बीज बोये जाते है भला ये तो खुद ब खुद नम सतह पा कर कहीं भी, कभी भी अंकुरित हो जाते है जैसे मुझें आप के स्नेह की, स्पर्श की, संरक्षण की हमेशा जरूरत रहती है वैसे इन्हे भी हमारी जरूरत रहती है l आपको नही लगा जब हम चाय पी रहे थे तब से ही ये मेरी प्रतिक्षा कर रहे थे l देखा आपने कल इस गमले में एक भी कली नही थी और आज रिझाने चार चार कलियाँ निकल आयी और अमर बेल तो देखो हमारे प्यार की तरह दिन दुगनी रात चोगनी तरक्की कर रही है l
सुधा लगातार बोलती रहती और निखिल हाँ, हूँ में जबाब देता रहता और जब समय बहुत हो जाता तो निखिल सुधा को घूरने लगता l सुधा शरारत करते अंदर जाती और अपनी पसंद के इत्र से भरा रुमाल निखिल को दे बोलती, लो ये रही मैं तुम्हारे पास मुझे महसुस करो और निखिल रुमाल को अपने चेहरे पर डाल आँख बंद कर गहरी गहरी साँस ले सुधा को स्मरण कर ख़ुशबू को महसुस करता और जब सुधा की बड़बड़ सुनते सुनते बहुत समय हो जाता तो उठ सुधा के सर पर टप्पी मार कहता सच सुधा तुम्हारा मन भी इन अधखिली कलियों की तरह कोमल, भावुक, सुंदर है l जो भी हो तुम बहुत खूब हो l अपनी तारीफ़ सुन सुधा ख़ुशी से आकाश की ऊँचाईयाँ भरने लगती l
आज भी दोनों बगीचे में बैठ चाय पी रहे थे चाय खत्म होते ही सुधा उठने लगी तो निखिल ने सुधा का हाथ पकड़ अपने पास बिठा लिया l सुधा का भी आज एनर्जी लेवल उसे कम लग रहा था l वह भी निखिल से सट के बैठ गयी तभी एक तार मिलता है तार पढ़ते निखिल के चेहरे के भाव बदल जाते हैं l वह सुधा को बतलाता है उसे जाना होगा इमर्जेंसी आ गयी है l
बे मन से सुधा निखिल के जाने की तैयारी करती है l तुम साथ नही चलोगी के प्रश्न से सुधा एक दम चौक जाती है l निखिल खिलखिलाकर हँसता हुआ कहता है मतलब साथ ले जाने को अपना इत्र वाला रुमाल नही दोगी l सुधा डबडबाई आँखो से अन्दर जाती है और बड़े इतमिनान से अपनी पसंद का ईत्र रुमाल पर लगा कर निखिल को दे बच्चों की तरह लिपट रो पड़ती है l निखिल सुधा की पीठ थपथपा बड़े प्यार से, मेरी बहादुर बीबी कह गले लगा लेता है l
समय गुजरने लगा सुधा पत्थर होती जा रही थी, न भोर होने की उसको खबर थी न साँझ ढलने का उसे होश था न बहार बगीचे मे आती और न ही पेड़ पौधों को पानी देती l अब तो उसका रोज़ का इंतजार भी खत्म हो गया था l
एक दिन विक्रांत का सुधा के यहाँ आना हुआ l सुधा के दूर के रिश्ते में भाई लगता हैl सुधा की ऐसी हालत देख वह चौक पड़ा l सुधा ये क्या हाल बना रखा है अपना , कोई परेशानी या बीमारी है l विक्रांत को देख सुधा की पथराई आँखे झलक पड़ी l यूँ सुधा को बेबस, लाचार देख विक्रांत को बहुत दुख हुआ l सुधा को संभालते हुए बोला, क्या हुआ मेरी प्यारी बहना को, क्यों इतना परेशान है, अरे कोई बात थी तो फोन लगा लिया होता l क्या हमारे कुंवर सहाब ध्यान नही रख रहे हमारी बहना का l सुधा निःशब्द थी l निखिल की बेवफ़ाई को कैसे बयाँ करे l सुधा ऐसी बुत बनी रहोगी तो कैसे पता चलेगा l सुधा अरविंद का पत्र ला विक्रांत को देती है l विक्रांत को पत्र पढ़ बहुत आश्चर्य होता है, वह निखिल को बहुत अच्छे से तो नही जानता था पर इतना तो जरूर से जानता था की निखिल की ये मानसिकता नहीं हो सकती l कुछ पल मौन रह सोच कर सुधा के सर पर हाथ रख उसके आँसू पोछते हुए एक बार निखिल के पास साथ चलने के लिये कहता है l भाई का स्नेह पा सुधा की मुरझाई बेल फिर से पनप उठती है l
आज विक्रांत और सुधा को निखिल से मिलने जाना है l महिनों बाद सुधा ने दर्पण का दीदार किया l आज वह सलीके से तैयार हुई l उसने निखिल की मन पसंद साड़ी पहनी l निखिल को सुर्ख लाल रंग की अंडाकार बिंदी सुधा पर बहुत अच्छी लगती थी, वही बिंदी लगाई निखिल के पसंद की घड़ी, निखिल के पसंद का पर्स और अपनी पसंद का इत्र जो वह निखिल के रुमाल में लगा अपनी मौजूदगी का अहसास कराती थी लगाया l और एक इत्र वाला रुमाल निखिल के लिये अपने साथ निखिल को देने के लिये रख लिया l
गेट के बाहर ड्राइवर और विक्रांत सुधा के आने का इंतजार कर रहे थे l विक्रांत सुधा को आवाज़ लगाता है l सुधा जल्दी करो लम्बा सफ़र है सुधा हड़बड़ाती बाहर आती है l सुधा की मासूमियत और श्रृंगार को देख विक्रांत स्तब्ध रह जाता है l इतने भाव से तो श्रृंगार शायद उसने शादी पर भी न किया हो l आज तो वह अपने संग लालिमा लिये चल रही थी l लाल साड़ी ,लाल बिंदी, लाल चूड़ियाँ मन ही मन वह ईश्वर से उसके सुखी जीवन की कामना करता है l
पिछे की सीट पर विक्रांत और सुधा बैठे हैं l सुधा की नज़र गाड़ी के साइड वाले काँच पर पड़ती है l अपने आप को काँच में देख बरबस मुस्कुरा जाती है और यकायक अपनी बेबसी देख रो पड़ती है l मिसेस निखिल लेफ्टिनेंट सुधा जो कभी गर्व से फूली नही समाती थी आज ख़ुद को दीनहीन नज़र आ रही थी l मन में भावनाओं का कोतूहल चरम पर था l महीनों बाद निखिल से मिलना जो हो रहा था, जब वो मिलेंगे तो क्या कहूँगी,क्यों छोड़ा मुझें जबाब दो, गुनाह तो बताया होता मेरा जो मुझे विरह की तपन दे आये l फिर ख़ुद ही ख़ुद से कहती कुछ तो गुनाह किये होगें मेने तभी तो उनकी चाहत में विरह की इतनी वेदना मिल रही है, पर जाते ही गिला शिकवा नही करूँगी l निखिल का हाथ पकड़ निखिल को महसुस करूँगी l सुधा के भाव उसके चेहरे पर अंकित हो रहे थे l विक्रांत को सुधा की बेचेनी दिख रही थी l अपना हाथ उसके हाथ पर रख मुस्कुराता कहता है, रिलेक्स सुधा बस चल रहे है न सब ठीक हो जायेगा l
सुबह से निकले साँझ होने को आई विक्रांत ने कई बार सुधा को खाने के लिये कहा पर सुधा से तो कुछ खाया ही नही गया बस उसे तो निखिल ही निखिल दिखाई दे रहा था l निखिल से मिलने का ख्याल उसे विक्रांत से पहले क्यों नहीं आया वह सोच रही थी l केन्ट एरिया के आते ही इंतजार खत्म हुआ मैन गेट पर गाड़ी से उतर विक्रांत ने मिसेज निखिल लेफ्टिनेंट कहते हुए परिचय दिया l सूचना तुरंत अंदर ऑफिसर तक पहुँचती है l
निर्देश मिलते ही दोनों बड़े गेट खोल दिये जाते है विक्रांत की गाड़ी के पीछे आर्मी की गाड़ियों का काफिला सुधा को निखिल से मिलाने निकल पड़ता है l विक्रांत की गाड़ी पहुँचने से पहले ऑफिसर सुधा को रिसीव करने पहुँच चुके होते है l सुधा अपने आप को गौरवान्वित महसुस कर रही थी l सुधा के उतरते ही सबसे पहले व्यक्ति ने अपना परिचय अरविंद नाम से दिया, वही अरविंद जिसके खत ने उसकी ज़िंदगी की परिभाषा बदल दी थी l सुधा निखिल को खामोशी से देख आगे बढ़ जाती है l अरविंद सुधा के पीछे साथ साथ चलने लगता है l सुधा जैसे ही रूम में प्रवेश करती है उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाती है l निखिल की बड़ी सी माला चढ़ी तस्वीर को सामने फूलों से सजा देख मूर्छित हो वही गिर जाती है l होश आने पर ख़ुद को डॉक्टर्स के बीच पाती है l सुधा अरविंद के दोनो हाथ पकड़ बिलख पड़ती है l भैया वो खत क्या था, क्यों मुझे अंधेरे में रखा,क्यों निखिल के लिये मेरे मन मे बेवफ़ाई के बीज बोये l अरविंद घुटनों के बल बैठ अपना सर सुधा की गोद में रख फूटफूट कर रो पड़ता है l lकहता है बड़े भाई की आज्ञा को छोटे भाई ने निभाया l जानता हूँ मैं आपका गुनाहगार हूँ l
शहीद होने से पहले घायल अवस्था में जब वे बोल भी नही पा रहे थे तब उन्होंने मेरा हाथ अपने हाथ में लेते हुए अपनी अंतिम इच्छा मुझसे पूरी करने का वादा लिया l कहने लगे मेरी सुधा मेरी बेवफ़ाई तो सहन कर जायेगी पर मेरे दुनिया में न रहने की खबर से वो जीते जी मर जायेगी l अरविंद मुझे सुधा के लिये तुम्हे जिंदा रखना है l अक्सर आप की बातें किया करते थे l आप को बेहद चाहतें थे l उनकी मुस्कान पर आप का नाम लिखा था , मेने उनके हावो, विचारों में आप को पढ़ा है l हाल में सभी की आँखे नम थी। बाहर बादल भी तेज बरस कर निखिल की याद में रो रहा था l तस्वीर के पास पुराना इत्र वाला रुमाल देख सुधा रोते रोते तस्वीर को चूम लेती है l विक्रांत के पास सुधा को कहने के लिये कुछ भी नही था l वह चुपचाप सुधा के पास आ कर खड़ा हो जाता है l सुधा विक्रांत को देखती है फिर निखिल की तस्वीर के पास जा रखे फूलों में से कुछ फूलों को चुन कर अपने साथ ले लेती है और अपने साथ लायी इत्र वाला रुमाल निखिल की तस्वीर के पास रख कुछ देर उसकी तस्वीर को देखती हुई चुपचाप बाहर निकल जाती है l
***
|
|
|
|
|
अपनी कवितायेँ / गजल
"प्रिय बिस्तर"
|
|
|
|
|
|
द्वारा - डॉ. कमल किशोर सिंह
|
डॉ. कमल किशोर सिंह पेशे से पेडिएट्रिक्स हैं| इनकी शिक्षा-बगेन हाई स्कूल, पटना साईंस कौलेज और पटना मेडिकल कौलेज में हुई। इनके शौक हिन्दी, भोजपुरी और अंग्रेजी में कविता लिखना और पढ़ना है|पेशे से पेडिएट्रिक्स हैं| इनकी शिक्षा-बगेन हाई स्कूल, पटना साईंस कौलेज और पटना मेडिकल कौलेज में हुई। इनके शौक हिन्दी, भोजपुरी और अंग्रेजी में कविता लिखना और पढ़ना है|
|
|
|
|
|
प्रिय बिस्तर
एक परम रम्य पलंग हो
या चरमराती चारपाई ,
गुलगुल गलीचा हो बिछा
या लेदरा दरी चादर चटाई,
बिछा बाहर हो या अंदर
कुछ नहीं पड़ता है अंतर,
जहाँ पर मिलता निरंतर
निन्द्रा निराली का निमंत्रण,
है वही मेरा प्रिय बिस्तर
थका -मादा दिनभर का,
कर सकूँ कुछ बोझ हल्का,
चारों खाने चित या
सरक जाऊँ सर्प सा
बेरोक खर्राटे लगाऊँ,
इधर -ऊधर लूँ छ्टपटा
जहाँ उनिंद में या नींद में
कर सकूँ दुःख बिस्मरण
है वही मेरा प्रिय बिस्तर,
सुख का आवास अनायास हो,
दुःख - दर्द का कुछ ह्रास हो
एकांत में भी किसी के
सानिध्य का आभास हो,
जब टूट रहा आकाश हो,
या बर्फीली बातास हो,
जहाँ माँ की गोद सा
हर रात मिलता है सुरक्षण
है वही मेरा प्रिय बिस्तर .
***
|
|
|
|
|
अपनी कवितायेँ / गजल
"चन्द्रमा"
|
|
|
|
|
|
|
श्रीमती प्रिया भरद्वाज, शॉर्लट, नॉर्थ केरोलाइना, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की आजीवन सदस्य हैं। ये अभी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के आउटरीच शहर शॉर्लट, नॉर्थ केरोलाइना की संयोजक हैं। कई नये अ. हि. स. के जीवन सदस्यों को बनाकर ये जल्द अपने शहर को अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की शाखा बनाने में सफल होंगी।
|
|
|
|
|
चन्द्रमा
चारू चंद्र से चंचल तुम
मन की दीवारों को झंकृत करते तुम
पल पल आस लगाए मैं ।।
पावन प्रेम को अंकित करते तुम
मैं शांत हूँ नादिया सी।।
लहरों सी हलचल करते तुम ।
पल पल दिल की दीवारों में ।।
हर पल हलचल करते तुम ।।
मधुरिम - मधुरिम बातों से स्वप्नों को स्वर्णिम करते तुम .
गीतों के मधुरिम स्वर से तुम ,
जीवन को आलोकिक करते तुम
चारू चंद्र से चंचल तुम
मन की दीवारों को झंकृत करते तुम ।।
मैं शांत हूँ नादिया सी।।
लहरों सी हलचल करते तुम ।।
***
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति एवं सभी हिंदी प्रेमियों की ओर से बधाई
प्रिया भरद्वाज, शॉर्लट, नॉर्थ केरोलाइना
दो अवार्ड्स प्राप्त, २०२४
|
|
|
|
|
१ ) कम्युनिटी सर्विस अवार्ड, शार्लोट
इस वर्ष २०२४ में गांधी जयंती के अवसर पर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट हाऊस गाँधी पार्क शार्लोट में ५ अक्टूबर को ’कम्युनिटी सर्विस अवार्ड’, शार्लोट हुआ। इस कार्यक्रम का आयोजन सामाजिक कार्यकर्ता निमिष भट्ट के द्वारा किया गया था।
इस अवार्ड कार्यक्रम में प्रतिष्ठित समाज सेवकों को अवार्ड वितरित किये गए।
कार्यक्रम में सभी समुदाय - अमेरिकी ,चीनी ,जापानी, अफ़्रीकन और मैक्सिकन कार्यकर्ता सम्मिलित थे। सभी समुदायों से कुछ व्यक्तियों को सम्मानित किया गया।
भारतीय मूल के लोगों में प्रिया भारद्वाज को सम्मानित किया गया।
|
|
|
|
|
२ ) निर्दलीय वार्षिकोत्सव सह साहित्योत्सव २०२४ ( ५१ वाँ वार्षिक समारोह )
इस वर्ष लेखन के क्षेत्र में प्रिया भारद्वाज को आभासी रूप से ७ जुलाई को भोपाल में अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन निर्दलीय प्रकाशन द्वारा दिल्ली और भोपाल में किया जाता है। यह सम्मान विदेशों में रहने वाले अग्रिम लेखकों को दिया जाता है।
***
|
|
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति एवं सभी हिंदी प्रेमियों की ओर से
भावभीनी एवं विनम्र श्रद्धांजलि
|
|
|
|
|
|
श्रीमती ज्योत्सना रंजन धैर्यवान (23 अक्टूबर 1941 - 8 दिसंबर 2024) का पुणे, भारत के कल्पवृक्ष में शांति पूर्वक निधन हो गया। वें हमारे प्रिय मित्र और अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के ट्रस्टी श्री स्वप्न धैर्यवान की पूजनीय माता थीं। उन्होंने एक अद्भुत जीवन व्यतीत किया और सदैव सामुदायिक कल्याण में संलग्न रहीं। वह सच्ची हिंदी प्रेमी थीं और जहाँ भी रहीं, वहां प्रेम और स्नेह का प्रसार किया।
***
|
|
|
|
|
|
पाठकों की अपनी हिंदी में लिखी कहानियाँ, लेख, कवितायें इत्यादि का
ई -संवाद पत्रिका में प्रकाशन के लिये स्वागत है।
|
|
|
|
|
"प्रविष्टियाँ भेजने वाले रचनाकारों के लिए दिशा-निर्देश"
1.रचनाओं में एक पक्षीय, कट्टरतावादी, अवैज्ञानिक, सांप्रदायिक, रंग- नस्लभेदी, अतार्किक
अन्धविश्वासी, अफवाही और प्रचारात्मक सामग्री से परहेज करें। सर्वसमावेशी और वैश्विक
मानवीय दृष्टि अपनाएँ।
2.रचना एरियल यूनीकोड MS या मंगल फॉण्टमें भेजें।
3.अपने बायोडाटा को word और pdf document में भेजें। अपने बायो डेटा में डाक का पता, ईमेल, फोन नंबर ज़रूर भेजें। हाँ, ये सूचनायें हमारी जानकारी के लिए ये आवश्यक हैं। ये समाचार पत्रिका में नहीं छापी जायेगी।
4.अपनी पासपोर्ट साइज़ तस्वीर अलग स्पष्ट पृष्ठभूमि में भेजें।
5.हम केवल उन रचनाओं को प्रकाशित करने की प्रक्रिया करते हैं जो केवल अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति को भेजी जाती हैं। रचना के साथ अप्रकाशित और मौलिक होने का प्रमाणपत्र भी संलग्न करें।
E-mail to:shailj53@hotmail.com
or:president@hindi.org
contact
330-421-7528
***
|
|
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति
हिंदी लेखन के लिए स्वयंसेवकों की आवश्यकता
|
|
|
|
|
अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति के विभिन्न प्रकाशनों के लिए हम हिंदी (और अंग्रेजी दोनों) में लेखन सेवाओं के लिए समर्पित स्वयंसेवकों की तलाश कर रहे हैं जो आकर्षक और सूचनात्मक लेख, कार्यक्रम सारांश और प्रचार सामग्री आदि तैयार करने में हमारी मदद कर सकें।
यह आपके लेखन कौशल को प्रदर्शित करने, हमारी समृद्ध संस्कृति को दर्शाने और हिंदी साहित्य के प्रति जुनून रखने वाले समान विचारधारा वाले व्यक्तियों से जुड़ने का एक अच्छा अवसर है। यदि आपको लेखन का शौक है और आप इस उद्देश्य के लिए अपना समय और प्रतिभा योगदान करने में रुचि रखते हैं, तो कृपया हमसेalok.iha@gmail.comपर ईमेल द्वारा संपर्क करें। साथ मिलकर, हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
प्रबंध सम्पादक: श्री आलोक मिश्र
alok.iha@gmail.com
***
|
|
|
|
|
“संवाद” की कार्यकारिणी समिति
|
|
|
|
|
प्रबंद्ध संपादक – श्री आलोक मिश्र, NH, alok.iha@gmail.com
संपादक -- डॉ. शैल जैन, OH, shailj53@hotmail.com
सहसंपादक – अलका खंडेलवाल, OH, alkakhandelwal62@gmail.com
डिज़ाइनर – डॉ. शैल जैन, OH, shailj53@hotmail.com
तकनीकी सलाहकार – मनीष जैन, OH, maniff@gmail.com
|
|
|
रचनाओं में व्यक्त विचार लेखकों के अपने हैं। उनका अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की रीति - नीति से कोई संबंध नहीं है।
|
|
|
|
![](https://creative-assets.mailinblue.com/editor/social-icons/squared_colored/facebook_32px.png) |
|
|
|
|
|
|
|
|
|
|
This email was sent to {{ contact.EMAIL }}You received this email because you are registered with International Hindi Association
mail@hindi.org | www.hindi.org
Management Team
|
|
|
|
|
|
|
© 2020 International Hindi Association
|
|
|
|
|